श्री श्री १००८ संत शिरोमणी श्री देवरामजी महाराज
श्री राजारामजी महाराज के समाधि के बाद आपके प्रधान शिष्य श्री देवरामजी महाराज को आपके उपदेशो का प्रचार व प्रसार करने के उद्देश्य से आपकी गद्दी पर बिठाया और महंत श्री की उपाधि से विभूषित किया गया । महंत श्री देवरामजी ने अपने गुरुभाई श्री लच्छीरामजी ,श्री गणेशरामजी और श्री शंभुरामजी के साथ भ्रमण करते हुए श्री राजारामजी महाराज के उपदेशो को संसारियों तक पहुँचाने का प्रयत्न करने में अपना जीवन लगा दिया । श्री गुरुदेव राजारामजी के शुरू किये हुए काम को पूरा करने में अपना जीवन लगाकर अथक प्रयत्न करते रहे । जिसके लिए आंजना पटेल समाज सदा आपका ऋणी रहेगा।
श्री १00८ संत शिरोमणी श्री किशनारामजी महाराज
श्री राजारामजी महाराज के समाधि के बाद आपके प्रधान शिष्य श्री देवरामजी महाराज को आपके उपदेशो का प्रचार व प्रसार करने के उद्देश्य से आपकी गद्दी पर बिठाया और महंत श्री की उपाधि से विभूषित किया गया । महंत श्री देवरामजी ने अपने गुरुभाई श्री लच्छीरामजी ,श्री गणेशरामजी और श्री शंभुरामजी के साथ भ्रमण करते हुए श्री राजारामजी महाराज के उपदेशो को संसारियों तक पहुँचाने का प्रयत्न करने में अपना जीवन लगा दिया । श्री गुरुदेव राजारामजी के शुरू किये हुए काम को पूरा करने में अपना जीवन लगाकर अथक प्रयत्न करते रहे । जिसके लिए आंजना पटेल समाज सदा आपका ऋणी रहेगा।
श्री १00८ संत शिरोमणी श्री किशनारामजी महाराज
महंत श्री श्री १००८ संत शिरोमणि श्री किशनाराम जी महाराज शिकारपुरा (लूनी) पीठाधीश महंत श्री किशनाराम जी महाराज का ननिहाल रोहिचा (कल्ला) में भाखररामजी कुरड के यंहा माता श्रीमती चुन्नीबाई की कोख से दिनांक 20 अक्टूम्बर, १९३० को जन्म हुआ |
किशनारामजी के पिताजी का नाम वजारामजी ओड सुपुत्र श्री विरमारामजी हैं जो (लूनी) के रहने वाले हैं |
सात वर्ष की अवस्था में किशानारामजी के स्वास्थ्य में दिनोदिन गिरावट आती गयी, इस कारण वजारामजी किशनारामजी को शिकारपुरा आश्रम लेकर जाते और समाधी की परिक्रमा देकर वापस घर लोट आते, इसी बिच वजारामजी की भेंट महंत श्री देवारामजी महाराज के साथ हुयी, जिन्होंने किशनारामजी को अपने सानिध्य में रखने की इच्छा जाहिर की, तब वजारामजी ने अपने परिवार वालो से सलाह-मशविरा करके देवारामजी महाराज के सानिध्य में शिकारपुरा आश्रम को सुदुर्प कर दिया|
फिर देवारामजी महाराज के सानिध्य में किशनारामजी की प्राथमिक शिक्षा आरम्भ हुयी तथा साथ ही धर्म और समाज सम्बन्धी जानकारिया भी देते रहे| प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद जोधपुर से स्नातर की शिक्षा प्राप्त की तथा साथ ही आयुर्वेद शिक्षा (रजि. संख्या ६४६४ ए) का भी ज्ञान प्राप्त किया | शिक्षा ग्रहण करने के बाद महंत श्री देवारामजी ने शिकारपुरा आश्रम की जिम्मेदारी श्री किशनाराम जी को सॉप दी |
तत्पक्षात अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए महंत श्री देवारामजी के देवलोक गमन के बाद आषाढ़ वद ४ बुधवार विक्रम संवत २०५३ को शिकारपुरा आश्रम के गादीपति बने | पीठाधीश बनने के बाद महंत श्री किशनाराम जी महाराज ने अपने गुरु के बतलाये हुए रास्ते पर चलते हुए समाज के चहुमुखी विकास के लिए दिन-रात एक कर दिया| किशनारामजी हँसमुख एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनि थे | वे गरीब जनता की निशुल्क तथा सेवा भाव करतेसे उपचार करते थे | किशनारामजी ने अपना पूरा जीवन जन सेवा और गौ सेवा में समर्पित कर दिया |
आश्रम में आने वाले दर्शनार्थियों में छोटे से बड़े तक के लिए भोजन की निशुल्क वयवस्था वर्षो से चल रही हैं, महंत श्री का कहना था की मंदिर में बनाने वाली प्रसाद आने वाले हर श्रदालुओ को मिलनी चाहिए | इसलिए आश्रम का भोजनालय २४ घंटे खुला रहता हैं | यह व्यवस्था बिना किसी भेदभाव अनवरत चल रही हैं, इसलिए हर जाती धर्म के हजारो भक्त आपके अनुयायी हैं |
किशनारामजी महाराज ने समाज के चहुमुखी विकास के लिए सर्वप्रथम बालिका शिक्षा एवं मृत्युभोज पर ज्यादा जोर दिया, शिक्षण संस्थानों एवं छात्रावासों का निर्माण करवाया | किशनारामजी के प्रयास से राजारामजी आश्रम, शिकारपुरा में श्री राधेकृष्ण मंदिर का निर्माण, जोधपुर के पाल रोड में संत श्री देवारामजी छात्रावास एवं कॉलेज का निर्माण, आहोर में श्री राजारामजी आंजना पटेल छात्रावास का निर्माण, जालोर में श्री राजारामजी आंजना पटेल छात्रावास का निर्माण, दिल्ली में शिक्षण संस्थान के लिए भूमि की खरीद, हरिद्वार एवं रामदेवरा में धर्मशाला का निर्माण, माउंट आबू में श्री राजारामजी छात्रावास एवं शिक्षण संस्थान का निर्माण इत्यादि अनेक कार्य संपन किये | तथा कल्याणपुर में श्री राजारामजी चिकित्सालय का शिलान्यास भी किशानारामजी के कर कमलो द्वारा हुआ | वर्तमान में राजस्थान में ६०, गुजरात में ४८, मद्यप्रदेश में ३५, कर्नाटका में १०, महारास्त्र में ६, तमिलनाडु में ४ छात्रावास का निर्माण हुआ जो एक रिकॉर्ड हैं |
इसी दरमियान किशनारामजी ने कलबी आंजना समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए अखिल भारतीय आंजना (पटेल) समाज महासभा का गठन किया | जिसके जरिये महंत जी ने समूचे भारत में फैले हुए आंजना समाज को एक नयी दिशा प्रदान की, जिसके फलस्वरूप आज समाज की छवि रास्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी हैं | महंत श्री किशनारामजी ने हमेशा समाज के लोगो को सावित्व एवं संस्कारपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दी तथा बाल-विवाह पर रोक एवं बालिका शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया | किशनारामजी समाज में समाज सुधारक के नाम से भी जाने जाते हैं |
आंजना समाज के लिए किशनारामजी ने तन-मन-धन से प्रयास करके समाज को एक उन्नतिशील समाज की दौड़ में शामिल करके ७७ वर्ष की अवस्था में दिनांक ६.१.२००७ को परमात्मा में लीन हो गए |
महंत श्री दयारामजी महाराज
महंत श्री दयाराम जी महाराज के बचपन का नाम डायाराम था| पाली जिले की तहसील रोहट के गॉंव रेवडा खुर्द में पिता श्री अणदाराम जी भूरिया (सुपुत्र श्री रावताराम जी भूरिया) एवं माता श्रीमती हरकू देवी (सुपुत्री श्री हंसाराम जी काग रेवडा कला) के सुपुत्र श्री डायाराम का जन्म ज्येष्ठ शुल्का द्वितीय विक्रम संवत २०२५ को आपके ननिहाल रेवडा कला में हुआ| आपके दो भाई श्री मेहराराम एवं श्री मोटाराम एवं तीन बहिने गजरीदेवी, गवरीदेवी एवं पानीदेवी हैं|
शिकारपुरा आगमन एवं शिक्षा दीक्षा
श्री दयाराम जी महाराज दिनांक १ जुलाई १९७९ को आश्रम आ गए| उस समय महंत श्री देवाराम जी महाराज भक्ति में लीन थे एवं श्री किशनाराम जी महाराज समाज सेवा में व्यस्थ थे| श्री दयाराम जी के पिताजी श्री अणदाराम जी भूरिया द्वारा महंत श्री देवाराम को दिए गए वचन को पूरा करने के उद्धेस्य से ही श्री दयाराम जी को साधुत्व स्वीकार करना पड़ा|
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गादीपती
1 Comments "गादीपति"
Jai shree gurudev ri sa